"Poetry raises the emotions and gives each its separate delight. Art stills the emotions and teaches them the delight of a restrained and limited satisfaction..."
~ Sri Aurobindo
आज से ९ वर्ष पूर्व ३१ अक्टूबर २००५ को भारत की एक प्रसिद्ध कवियत्री और लेखिका इस दुनिया को छोड़ दूसरी दुनिया में जा बसी। अमृता प्रीतम की दर्द भरी कविताओं और संवेदनशील कहानिंयों एवं उपन्यासों ने भारतीय साहित्य के अनगिनत प्रेमियों के दिलो-दिमाग़ में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। उनकी भाव-भरी रचनाएँ और उनके शब्द उनकी स्मृति को सदा ताज़ा ही रखेंगे, और साथ ही उनकी और इमरोज़ की अनूठी प्रेम-कथा साहित्य-प्रेमियों को एवं उनको भी जो प्रेम से प्रेम करते हैं आने वाले एक लम्बे समय तक अपने रंग में डुबोए रखेगी।
अमृता और इमरोज़ के एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण-भाव की कुछ झलक हमें उनके पत्रों द्वारा मिलती है, जिन पर आधारित एक पुस्तक भी अब पाठकों तक पहुँच चुकी है। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पत्रों का यह संग्रह, जिसका शीर्षक है - "Amrita and Imroz: In the Times of Love & Longing" दिल को छू लेता है। एक पत्र में इमरोज़ लिखते हैं - प्रेम ही दुनिया में एक मात्र स्वंत्रता है। तो दूसरे पत्र में हम अमृता को यह लिखते हुए पाते हैं - तुम ही तो हो मेरे १५ अगस्त।
उमा त्रिलोक की पुस्तक "अमृता-इमरोज़: एक प्रेम कथा" भी इस कवि और चित्रकार के अनोखे प्रेम एवं ४० वर्षों के संबंध की एक करीबी छवि प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक की एक समीक्षा आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।
लेकिन इन दोनों से परे है वह एक कविता जो अमृता ने लिखी थी, बीमारी के दिनों में अपने प्रेम के लिये। मैं तैनू फेर मिलांगी (मैं तुझे फिर मिलूँगी) - पंजाबी भाषा में लिखी इस कविता का हिंदी अनुवाद भी उतना ही खूबसूरत है।
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
कहाँ किस तरह पता नही
शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन
तेरे केनवस पर उतरुंगी
या तेरे केनवस पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
या फ़िर सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूंगी
या रंगो कि बाहों में बैठ कर
तेरे केनवस से लिपट जाउंगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी
या फ़िर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूंगी
और एक ठंडक सी बन कर
तेरे सीने से लगूंगी
मैं और कुछ नही जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जन्म मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खतम होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है
पर चेतना के धागे
कायनात के कण होते हैं
मैं उन कणों को चुनुंगी
धागों को बुनूँगी
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !
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Nine years ago from today, on 31st October 2005, an eminent Indian poet and author left this world to make her abode elsewhere. With her emotion-rich and heartfelt writing Amrita Pritam has made a special place for herself in the hearts of countless lovers of Indian literature. While her heart-touching poetry and sensitive portrayals will keep her memory alive, the one-of-a-kind love story of Amrita and Imroz will also keep enthralled, for a long time to come, the lovers of literature as well as all those who are in love with love.
The special bond of love and surrender to each other that Amrita and Imroz shared can be seen through the numerous letters they wrote to each other over the years. A book based on these letters is now also available for interested readers. Published in English, this collection of letters titled "Amrita and Imroz: In the Times of Love and Longing" is a delight. In one letter, Imroz writes to her - "Love is the only freedom in the world," and in another we find Amrita writing - "You are my 15th August".
Uma Trilok's book "Amrita-Imroz: A Love Story" presents a rare account of the unique love between a poet and a painter, and a special bond they shared for about 40 years. The book is available both in English and Hindi. A Hindi review of this book may be read here.
But beyond either of these books is that poem penned by Amrita herself, while she was very sick in later years of her life. The poem titled, Main Tenu Phair Milangi (I will meet you yet again) expresses so tenderly and beautifully what love meant to this poet-painter couple. Here it is in English translation, done by Nirupama Dutt.
I will meet you yet again
How and where
I know not
Perhaps I will become a
figment of your imagination
and maybe spreading myself
in a mysterious line
on your canvas
I will keep gazing at you.
Perhaps I will become a ray
of sunshine to be
embraced by your colours
I will paint myself on your canvas
I know not how and where —
but I will meet you for sure.
Maybe I will turn into a spring
and rub foaming
drops of water on your body
and rest my coolness on
your burning chest
I know nothing
but that this life
will walk along with me.
When the body perishes
all perishes
but the threads of memory
are woven of enduring atoms
I will pick these particles
weave the threads
and I will meet you yet again.
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You have now read the poem in Hindi and/or English. But nothing beats listening to the poem in its original language. And nobody recites Punjabi poetry better than Gulzar.
अब आप हिंदी अथवा अंग्रेजी में इस कविता को पढ़ चुके हैं। पर कविता का वास्तविक आनन्द तो उसकी मूल भाषा में ही मिल सकता है, और वो भी अगर गुलज़ार जैसी शख्सियत की आवाज़ में उसे सुना जाए।
अब आप हिंदी अथवा अंग्रेजी में इस कविता को पढ़ चुके हैं। पर कविता का वास्तविक आनन्द तो उसकी मूल भाषा में ही मिल सकता है, और वो भी अगर गुलज़ार जैसी शख्सियत की आवाज़ में उसे सुना जाए।
Image source: here
******Linking this with ABC Wednesday, P: P is for Poet, Poetry, Painter
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